Sunday, 9 August 2020

swami pranavananda ji

 


स्वामी प्रणवानन्द जी महाराज योगिराज श्री श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय के प्रमुखतम शिष्यों में थे| लाहिड़ी महाशय प्रतिदिन योगशास्त्र गीता की रहस्यपूर्ण तथा आध्यात्मिक यौगिक व्याख्या करते थे| स्वामी जी ने जो आध्यात्मिक व्याख्या की है वह उसी आधार पर है |  स्वामीजी की व्याख्या अद्भुत और अद्वितीय है; यौगिक रहस्यों का उद्घाटन उन्होंने बड़े ही सरल ढंग से किया है| साधक गण इसका अध्ययन कर वासुदेव को प्राप्त करने के लिए पूरे  मनोयोग से प्रयास करेंगे और सफल होंगे, ऐसा निश्चित है | 

स्वामीजी के जीवन का वृत्तांत परमहंस योगानंद जी की आत्मकथा योगी कथामृत में शीर्षक द्विशरीरी साधू के अंतर्गत उपलब्ध है| योगानंदजी को  स्वामीजी की अद्भुत योग शक्ति का अनुभव पहली भेंट में ही हो गया था,जब स्वामी प्रणवानन्द जी ने बिना अपने स्थान से हिले डुले ही, योगबल से दूसरे शरीर को धारण कर, केदार बाबू को बुला लिया था |परमहंस जी के समक्ष कहे गए उनके ये शब्द उनके अद्भुत योग ऐश्वर्य के साक्षी हैं –

इतने स्तंभित क्यों हो ? प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष के बीच सूक्ष्म एकता का सम्बन्ध सच्चे योगियों से छिपा नहीं है मैं यहाँ से क्षण मात्र में सुदूर कलकत्ता जाकर अपने शिष्यों से मिल कर उनसे वार्तालाप कर वापस लौट आ सकता हूँ और इसी प्रकार वे भी इच्छामात्र से सब प्रकार के स्थूल पदार्थों की बाधाओं का अतिक्रमण कर सकते हैं |

Why are you stupefied at all this? The subtle unity of the phenomenal world is not hidden from true yogis. I instantly see and converse with my disciples in distant Calcutta. They can similarly transcend at will every obstacle of gross matter."

भगवान श्रीकृष्ण से अपने आध्यात्मिक एकात्म को सिद्ध करते हुए स्वामीजी ने अपने महाप्रयाण से पूर्व जन समुदाय से कहा था –“सावधान ! मैं देहत्याग करने जा रहा हूँ”|

उन सिद्ध महात्मा की भगवद्गीता पर प्रकाशित यह आध्यात्मिक व्याख्या, पठन मात्र से ही पाठक को मन्त्र मुग्ध कर योग अभ्यास के लिए प्रेरित करे,ऐसी योगेश्वर श्रीकृष्ण से प्रार्थना है|

परमहंस योगानंद जी का पैतृकनिवास का ध्यानमंदिर,

जहाँ भगवान श्रीकृष्ण और मा काली ने उन्हें दर्शन दिए

डॉक्टर राका शङ्कर-

कलकत्ता स्थित परमहंस योगानंद जी के पैतृक निवास के सम्मुख

श्री रणबीर सिंह

स्वामीजी की गीता पर व्याख्या वर्ष 2009 में प्रकाशित कर वितरित की

1 comment:

  1. योगी कथामृत के द्विशरीरी संत जिन्होंने ऋषीकेश में हज़ारों लोगों को भोजन करा कर शरीर त्याग दिया।

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